👉 दसवाँ अध्याय “विभूति योग” कहलाता है। इसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि उनकी दिव्य विभूतियाँ (अलौकिक शक्तियाँ और विशेषताएँ) पूरे जगत में किस प्रकार प्रकट होती हैं। यह अध्याय भक्ति को और दृढ़ करता है, क्योंकि भगवान स्वयं अपने स्वरूप और महानता का परिचय कराते हैं।
मुख्य विषय
1. भगवान की महिमा
- श्रीकृष्ण कहते हैं – “मैं ही सबका आदि, मध्य और अंत हूँ।”
- ज्ञानी भक्त मेरी विभूतियों को जानकर मुझे अटल प्रेम से भजते हैं।
“अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः॥”
(अध्याय 10, श्लोक 8)
अर्थ – मैं ही सबका उद्गम हूँ, सब कुछ मुझसे ही चलता है। इसे जानकर ज्ञानी प्रेमपूर्वक मेरी भक्ति करते हैं।
2. भक्त की पहचान
- जो निरंतर भगवान का ध्यान करते हैं, भगवान उन्हें बुद्धियोग (सही मार्गदर्शन) प्रदान करते हैं।
- भगवान भक्त के हृदय में स्थित होकर अज्ञान को दूर करते हैं।
3. अर्जुन का अनुरोध
- अर्जुन कहते हैं – “हे भगवान! आपकी विभूतियाँ अनंत हैं, फिर भी कृपा करके मुझे बताइए कि किन-किन रूपों में आप इस जगत में प्रकट होते हैं।”
4. भगवान की विभूतियाँ (प्रमुख उदाहरण)
श्रीकृष्ण अपनी कुछ अद्भुत विभूतियों का वर्णन करते हैं :
- आध्यात्मिक विभूतियाँ
- “मैं आत्मा हूँ जो सब जीवों में स्थित है।”
- “मैं आदि, मध्य और अंत हूँ।”
- प्राकृतिक विभूतियाँ
- “मैं सूर्य में तेज हूँ, चंद्रमा में शीतलता हूँ।”
- “मैं समुद्र में गहराई हूँ, हिमालय में स्थिरता हूँ।”
- “मैं गंगा में पवित्रता हूँ।”
- मानव व दिव्य गुण
- “मैं पुरुषों में इंद्र हूँ, ऋषियों में नारद हूँ, यक्षों में कुबेर हूँ।”
- “मैं वृष्णि वंश में वासुदेव हूँ, पाण्डवों में अर्जुन हूँ।”
- “मैं तपस्वियों में शिव हूँ।”
5. सार संदेश
- भगवान कहते हैं कि उनकी विभूतियाँ अनंत हैं।
- यह जानने के लिए इतना समझना पर्याप्त है कि –
“अहं आत्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।
अहं आदिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च॥”
(अध्याय 10, श्लोक 20)
अर्थ – हे अर्जुन! मैं सब प्राणियों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ। मैं ही सभी का आदि, मध्य और अंत हूँ।
सरल सार (आसान भाषा में)
- भगवान ही सबके आदि, मध्य और अंत हैं।
- जो भक्त भगवान की विभूतियों को जानकर भक्ति करता है, वही ज्ञानी है।
- भगवान की अनंत विभूतियाँ हैं – सूर्य, चंद्रमा, समुद्र, पर्वत, गंगा, ऋषि, देवता आदि सबमें उनकी झलक है।
- भगवान स्वयं कहते हैं – “मैं आत्मा रूप से सब प्राणियों में विद्यमान हूँ।”