👉 गीता का बारहवाँ अध्याय संपूर्ण रूप से भक्ति मार्ग पर केंद्रित है। इसमें अर्जुन भगवान से पूछते हैं कि – “हे कृष्ण! कौन श्रेष्ठ है – वह जो निराकार (अव्यक्त) ब्रह्म की उपासना करता है या वह जो आपके साकार रूप की भक्ति करता है?”
इस पर श्रीकृष्ण साकार भक्ति को सरल और श्रेष्ठ बताते हैं।
मुख्य विषय
1. भक्ति बनाम निराकार उपासना
- निराकार ब्रह्म की उपासना कठिन है क्योंकि साधक को मन को स्थिर करना कठिन लगता है।
- साकार भगवान की प्रेमपूर्वक भक्ति करना सरल है और शीघ्र ही मोक्ष दिलाती है।
2. अनन्य भक्ति
- जो भक्त अपना मन और बुद्धि केवल भगवान में लगाता है और हर कार्य भगवान को समर्पित करता है, वही सर्वोत्तम भक्त है।
“मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।
श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः॥”
(अध्याय 12, श्लोक 2)
3. भक्ति की सीढ़ियाँ (Step by Step)
भगवान अर्जुन को बताते हैं कि भक्ति के कई स्तर हैं :
- मन को पूर्णत: भगवान में लगाना।
- यदि यह कठिन हो तो नियमित साधना (अभ्यास योग) करो।
- यदि अभ्यास भी कठिन हो तो अपने सभी कर्म भगवान को अर्पित करो।
- यदि यह भी संभव न हो तो सभी कर्मों के फल का त्याग करो।
4. सच्चे भक्त के लक्षण
श्रीकृष्ण बताते हैं कि सच्चा भक्त कौन है –
- जो सब प्राणियों से द्वेष रहित है।
- जो मित्र, दया, क्षमा, संयम और संतोष से युक्त है।
- जो सुख-दुख, लाभ-हानि और सम्मान-अपमान में समभाव रखता है।
- जो आसक्ति, अहंकार और ईर्ष्या से मुक्त है।
- जो ईश्वर में स्थिर श्रद्धा रखता है।
5. भगवान का वचन
- ऐसे भक्त भगवान को अत्यंत प्रिय होते हैं।
- अध्याय के अंत में कृष्ण बार-बार कहते हैं कि जो भक्त विनम्र, दयालु, क्षमाशील और ईश्वर-निष्ठ है, वही उन्हें सबसे प्रिय है।
सरल सार (आसान भाषा में)
- निराकार साधना कठिन है, इसलिए साकार भगवान की भक्ति सरल और श्रेष्ठ है।
- यदि मन को भगवान में लगाना कठिन हो तो अभ्यास, कर्म-समर्पण और त्याग का मार्ग अपनाना चाहिए।
- सच्चा भक्त वह है जो समभावी, दयालु, अहंकार रहित और शांतचित्त है।
- भगवान कहते हैं – “ऐसे भक्त मुझे अत्यंत प्रिय हैं।”