👉 गीता का अठारहवाँ और अंतिम अध्याय संपूर्ण गीता का सार है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने संन्यास (त्याग), कर्मों के फल का परित्याग, गुण और कर्तव्य तथा भक्ति की महिमा को विस्तार से बताया है। यह अध्याय मनुष्य को उसके जीवन का अंतिम लक्ष्य – मोक्ष – प्राप्त करने का मार्ग बताता है।


मुख्य विषय

1. संन्यास और त्याग का भेद

  • संन्यास – सभी कामनाओं वाले कर्मों का त्याग।
  • त्याग – कर्मों को करते हुए उनके फल की इच्छा का त्याग।

👉 श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि कर्मों को छोड़े बिना, केवल फल की आसक्ति छोड़कर कर्म करना श्रेष्ठ है।


2. कर्म के तीन प्रकार

  • सात्त्विक कर्म – कर्तव्य भावना से किया गया।
  • राजसिक कर्म – लोभ, स्वार्थ या फल की इच्छा से किया गया।
  • तामसिक कर्म – अज्ञान, आलस्य या दूसरों को कष्ट देने के लिए किया गया।

3. ज्ञान, कर्म और कर्ता के तीन गुण

  • सात्त्विक – शुद्ध, सत्यप्रिय और कल्याणकारी।
  • राजसिक – आसक्ति और फल-प्राप्ति की लालसा से प्रेरित।
  • तामसिक – अविवेकी, हानिकारक और आलसी।

4. वर्ण और कर्तव्य (स्वधर्म)

भगवान कहते हैं कि प्रत्येक मनुष्य को अपने स्वभाव के अनुसार कर्तव्य करना चाहिए –

  • ब्राह्मण – ज्ञान, शांति, संयम और तप।
  • क्षत्रिय – साहस, पराक्रम, शासन और रक्षा।
  • वैश्य – व्यापार, कृषि और गौ-पालन।
  • शूद्र – सेवा और श्रम।

👉 अपने स्वधर्म का पालन ही परम धर्म है।


5. भक्ति की महिमा

  • श्रीकृष्ण कहते हैं – सभी धर्मों को छोड़कर केवल मेरी शरण में आओ।
  • ऐसा करने से मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा और मोक्ष प्रदान करूँगा।

महत्वपूर्ण श्लोक

“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥”

(अध्याय 18, श्लोक 66)

अर्थ – हे अर्जुन! सभी धर्मों को त्यागकर केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा। भय मत करो।


सरल सार (आसान भाषा में)

  • इस अध्याय में गीता का संपूर्ण निष्कर्ष है –
    • कर्म मत छोड़ो, केवल फल की आसक्ति छोड़ो।
    • प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्वधर्म का पालन करना चाहिए।
    • सात्त्विक जीवन अपनाना और भक्ति करना ही श्रेष्ठ मार्ग है।
    • अंत में भगवान कृष्ण कहते हैं कि उनकी शरण में जाने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

🌼 निष्कर्ष :
अध्याय 18 में गीता का अंतिम और सबसे गहरा संदेश है – “कर्म करो, फल की चिंता मत करो, और अंततः अपना जीवन भगवान को समर्पित कर दो। यही मोक्ष का मार्ग है।”