👉 गीता का तीसरा अध्याय कर्म और कर्तव्य के महत्व पर केंद्रित है। श्रीकृष्ण यहाँ अर्जुन को यह समझाते हैं कि जीवन का आधार कर्म है और बिना कर्म किए कोई भी मुक्ति (मोक्ष) या प्रगति प्राप्त नहीं कर सकता।


मुख्य विषय

  1. ज्ञान बनाम कर्म का प्रश्न
    • अर्जुन पूछते हैं कि अगर ज्ञान (सांख्य योग) श्रेष्ठ है तो फिर उन्हें युद्ध जैसे कर्म में क्यों लगाया जा रहा है?
    • श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि केवल ज्ञान से नहीं, बल्कि कर्म के द्वारा ही मुक्ति संभव है।
  2. कर्म का महत्व
    • संसार कर्म से चलता है।
    • मनुष्य एक पल भी बिना कर्म किए नहीं रह सकता।
    • निष्क्रियता (कुछ न करना) से पतन होता है।
    “न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
    कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः॥”

    (अध्याय 3, श्लोक 5) अर्थात – कोई भी व्यक्ति एक क्षण के लिए भी बिना कर्म किए नहीं रह सकता, क्योंकि प्रकृति के गुण उसे कर्म करने को मजबूर करते हैं।
  3. निष्काम कर्म
    • कर्म करते समय फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए।
    • यह अध्याय निष्काम कर्म सिद्धांत को स्थापित करता है।
  4. लोकसंग्रह (समाज का कल्याण)
    • श्रेष्ठ पुरुष को अपने कर्म से दूसरों के लिए आदर्श बनाना चाहिए।
    • यदि वह कर्म करना छोड़ देगा, तो सामान्य लोग भी कर्म त्याग देंगे और समाज में अव्यवस्था फैल जाएगी।
    “यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
    स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥”

    (अध्याय 3, श्लोक 21) अर्थात – श्रेष्ठ व्यक्ति जैसा आचरण करता है, वैसे ही सामान्य लोग उसका अनुसरण करते हैं।
  5. अहंकार त्याग और ईश्वर को समर्पण
    • श्रीकृष्ण बताते हैं कि सभी कर्म प्रकृति द्वारा कराए जाते हैं।
    • मनुष्य को यह समझना चाहिए कि “मैं कर्ता नहीं हूँ, सब ईश्वर की इच्छा से हो रहा है।”
  6. काम और क्रोध का शत्रु रूप
    • अध्याय के अंत में श्रीकृष्ण बताते हैं कि काम (अत्यधिक इच्छा) ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।
    • काम से क्रोध, मोह और विनाश उत्पन्न होते हैं।
    • इस पर नियंत्रण करके ही व्यक्ति शांति प्राप्त कर सकता है।

सरल सार (आसान भाषा में)

  • बिना कर्म किए जीवन असंभव है।
  • कर्म करते रहो, लेकिन फल की चिंता मत करो।
  • श्रेष्ठ पुरुष को आदर्श स्थापित करना चाहिए।
  • काम, क्रोध और लोभ सबसे बड़े शत्रु हैं।
  • अपने कर्मों को ईश्वर को समर्पित करो, तभी मुक्ति संभव है।