👉 गीता का चौथा अध्याय कर्म, ज्ञान और संन्यास का अद्भुत संगम है। इसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि सही ज्ञान के साथ किया गया कर्म ही मुक्ति का मार्ग है।


मुख्य विषय

1. गीता का दिव्य ज्ञान

  • श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह योग (गीता का ज्ञान) उन्होंने पहले सूर्यदेव को, फिर मनु को और उसके बाद राजर्षियों को दिया था।
  • समय के साथ यह ज्ञान लुप्त हो गया, और अब वे अर्जुन को यह ज्ञान दे रहे हैं।

“इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्॥”

(अध्याय 4, श्लोक 1)


2. भगवान का अवतार रहस्य

  • जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब भगवान अवतार लेकर धर्म की रक्षा करते हैं।

“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽआत्मानं सृजाम्यहम्॥”

(अध्याय 4, श्लोक 7)

  • धर्म की स्थापना, सज्जनों की रक्षा और दुष्टों के विनाश के लिए भगवान अवतार लेते हैं।

3. कर्म और ज्ञान का समन्वय

  • केवल कर्म या केवल संन्यास से मुक्ति नहीं मिलती।
  • सही समझ (ज्ञान) के साथ कर्म करने से व्यक्ति बंधन से मुक्त होता है।

4. यज्ञ की व्याख्या

  • श्रीकृष्ण अनेक प्रकार के यज्ञों (त्याग और साधना) का वर्णन करते हैं –
    • ज्ञान यज्ञ (ज्ञान की साधना)
    • इंद्रिय संयम यज्ञ
    • तप यज्ञ
    • दान यज्ञ
  • इनमें से ज्ञान यज्ञ को सर्वोत्तम कहा गया है।

“श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप।
सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते॥”

(अध्याय 4, श्लोक 33)


5. ज्ञान का महत्व

  • ज्ञान से मनुष्य संदेह और मोह से मुक्त होता है।
  • जैसे अग्नि लकड़ी को भस्म कर देती है, वैसे ही ज्ञान सारे पापों को नष्ट कर देता है।

6. श्रद्धा और गुरु का महत्व

  • जो श्रद्धा और भक्ति से गुरु से ज्ञान प्राप्त करता है, वह अज्ञान से मुक्त हो जाता है।

“तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः॥”

(अध्याय 4, श्लोक 34)


सरल सार (आसान भाषा में)

  • भगवान समय-समय पर धर्म की रक्षा हेतु अवतार लेते हैं।
  • ज्ञान यज्ञ (सच्चा ज्ञान) सभी यज्ञों में श्रेष्ठ है।
  • कर्म ज्ञान से युक्त होकर करना चाहिए, तभी वह बंधन से मुक्त करता है।
  • गुरु और श्रद्धा के बिना सच्चा ज्ञान प्राप्त नहीं होता।
  • ज्ञान से मोह, अज्ञान और पाप नष्ट हो जाते हैं।