👉 गीता का सोलहवाँ अध्याय मनुष्य के भीतर की दैवी (सात्विक) और आसुरी (नकारात्मक) प्रवृत्तियों का वर्णन करता है। भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि कौन-सी प्रवृत्तियाँ मनुष्य को मोक्ष की ओर ले जाती हैं और कौन-सी उसे बंधन और पतन की ओर धकेलती हैं।


मुख्य विषय

1. दैवी सम्पत्ति (मोक्ष की ओर ले जाने वाली)

दैवी गुण वाले व्यक्ति का स्वभाव –

  • अभय (निर्भयता)
  • हृदय की शुद्धि
  • आत्मसंयम
  • अहिंसा
  • सत्यवादिता
  • करुणा
  • क्षमा
  • विनम्रता
  • दानशीलता
  • सरलता
  • इन्द्रिय-निग्रह
  • शांति, करुणा और अध्यात्म में रुचि

👉 ऐसे गुणों वाले व्यक्ति धीरे-धीरे ईश्वर की ओर बढ़ते हैं और मोक्ष प्राप्त करते हैं।


2. आसुरी सम्पत्ति (बंधन और पतन की ओर ले जाने वाली)

आसुरी प्रवृत्ति वाले व्यक्ति का स्वभाव –

  • अहंकार और अभिमान
  • क्रोध और कठोरता
  • कपट और असत्य
  • कामना और लोभ
  • कठोर वाणी
  • दम्भ और पाखण्ड
  • असंयम और आसक्ति
  • हिंसा, निर्दयता और ईर्ष्या

👉 ऐसे लोग भौतिक सुखों में फँसकर मोहग्रस्त रहते हैं और बार-बार जन्म-मरण के चक्र में पड़ते हैं।


3. दैवी और आसुरी मार्ग का परिणाम

  • दैवी मार्ग – मोक्ष की ओर ले जाता है।
  • आसुरी मार्ग – नरक और बंधन की ओर ले जाता है।

महत्वपूर्ण श्लोक

“दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता।
मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव॥”

(अध्याय 16, श्लोक 5)

अर्थ – हे अर्जुन! दैवी सम्पत्ति मोक्ष की ओर ले जाती है और आसुरी सम्पत्ति बंधन की ओर। लेकिन तू चिंता मत कर, क्योंकि तू दैवी सम्पत्ति से युक्त है।


सरल सार (आसान भाषा में)

  • इस अध्याय में मनुष्य के दो स्वभाव बताए गए – दैवी (सकारात्मक/सत्कर्म) और आसुरी (नकारात्मक/दुष्कर्म)
  • दैवी गुण अपनाने से मोक्ष मिलता है, जबकि आसुरी गुण अपनाने से पतन होता है।
  • भगवान अर्जुन को आश्वासन देते हैं कि वह दैवी सम्पत्ति से युक्त है।