👉 गीता का चौदहवाँ अध्याय प्रकृति के तीन गुणों – सत्व, रज और तम का विस्तार से वर्णन करता है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि ये तीनों गुण जीवात्मा को बाँधते हैं और मनुष्य का स्वभाव, कर्म और जीवन-पथ इन्हीं से निर्धारित होता है।


मुख्य विषय

1. तीन गुण कौन से हैं?

  1. सत्त्व गुण (ज्ञान और पवित्रता)
    • शांति, संतोष, करुणा, संतुलन और सत्यप्रियता का भाव देता है।
    • यह सुख और ज्ञान से बाँधता है।
  2. रज गुण (चंचलता और कामना)
    • इच्छा, लोभ, महत्वाकांक्षा और कर्म की प्रवृत्ति को बढ़ाता है।
    • यह कर्म और कर्मफल की आसक्ति से बाँधता है।
  3. तम गुण (अज्ञान और जड़ता)
    • आलस्य, प्रमाद, मोह, क्रोध और अंधकार की ओर ले जाता है।
    • यह अज्ञान और जड़ता से बाँधता है।

2. गुणों के प्रभाव

  • सत्त्व गुण प्राणियों को ऊपर (ज्ञान और मोक्ष) की ओर ले जाता है।
  • रज गुण उन्हें मध्य (भोग और कर्मफल) में रखता है।
  • तम गुण उन्हें नीचे (अज्ञान और पतन) की ओर धकेलता है।

3. गुणातीत (तीनों गुणों से परे)

  • जो साधक इन तीनों गुणों से ऊपर उठ जाता है, वही सच्चा मुक्त है।
  • गुणातीत साधक –
    • सुख-दुख, मान-अपमान, लाभ-हानि में समभाव रखता है।
    • किसी से द्वेष या आसक्ति नहीं करता।
    • केवल भगवान में समर्पित रहता है।

4. भगवान की शरण

  • श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो भक्ति में लीन होकर मेरे शरणागत होता है, वह तीनों गुणों से परे जाकर अमरत्व और मोक्ष प्राप्त करता है।

महत्वपूर्ण श्लोक

“गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान्।
जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तोऽमृतमश्नुते॥”

(अध्याय 14, श्लोक 20)

अर्थ – जो जीवात्मा इन तीनों गुणों से ऊपर उठ जाता है, वह जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा और दुखों से मुक्त होकर अमृतत्व को प्राप्त करता है।


सरल सार (आसान भाषा में)

  • सत्त्व = ज्ञान और शांति, रज = कर्म और इच्छाएँ, तम = अज्ञान और आलस्य।
  • ये तीनों गुण जीव को बाँधते हैं।
  • इनसे ऊपर उठकर ही आत्मा परम मोक्ष को प्राप्त करती है।
  • केवल भगवान की भक्ति से ही साधक गुणातीत होकर मुक्त होता है।