👉 गीता का छठा अध्याय योग का हृदय माना जाता है। इसमें श्रीकृष्ण बताते हैं कि सच्चा योगी कौन है, योगी का जीवन कैसा होना चाहिए और ध्यान (Meditation) से आत्मा की परम स्थिति कैसे प्राप्त होती है।
मुख्य विषय
1. सच्चा योगी कौन है?
- केवल कर्म का त्याग करने वाला संन्यासी नहीं होता, न केवल तपस्वी ही श्रेष्ठ है।
- सच्चा योगी वही है जो कर्म करता है परंतु फल की आसक्ति से मुक्त रहता है।
“अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः।
स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः॥”
(अध्याय 6, श्लोक 1)
2. योग का अभ्यास
- योगी को संयमित जीवन जीना चाहिए –
- न अत्यधिक भोजन करना, न अत्यधिक उपवास।
- न बहुत सोना, न बहुत जागना।
- संतुलन ही योग का आधार है।
3. ध्यान की विधि
- योगी को एकांत स्थान में बैठकर चित्त और इंद्रियों को वश में करके ध्यान करना चाहिए।
- शरीर, मन और बुद्धि को स्थिर करके आत्मा में लीन होना ही ध्यान योग है।
“युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानसः।
शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति॥”
(अध्याय 6, श्लोक 15)
4. योगी के लक्षण
- योगी सब प्राणियों में समभाव रखता है।
- किसी को मित्र, शत्रु, बंधु या पराया नहीं मानता।
- वह आत्मा और परमात्मा के मिलन में स्थित होता है।
5. योगी सबसे श्रेष्ठ है
- श्रीकृष्ण कहते हैं कि तपस्वियों, ज्ञानियों और कर्मियों में योगी सबसे श्रेष्ठ है।
- और योगियों में भी वह श्रेष्ठ है जो पूर्ण श्रद्धा और प्रेम से भगवान में ध्यान लगाता है।
“योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना।
श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः॥”
(अध्याय 6, श्लोक 47)
सरल सार (आसान भाषा में)
- सच्चा योगी निष्काम कर्मी होता है।
- संयमित जीवन और ध्यान ही योग का मार्ग है।
- योगी सभी प्राणियों को समान दृष्टि से देखता है।
- सभी साधकों में परमभक्त योगी सबसे श्रेष्ठ है।