👉 आठवाँ अध्याय ईश्वर, आत्मा और मृत्यु के समय स्मरण पर केंद्रित है। इसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि मृत्यु के समय जो साधक जिस भाव का स्मरण करता है, वही उसे अगले जन्म में प्राप्त होता है।


मुख्य विषय

1. अर्जुन के प्रश्न

अर्जुन भगवान से सात प्रश्न पूछते हैं –

  • ब्रह्म क्या है?
  • अध्यात्म क्या है?
  • कर्म क्या है?
  • अधिभूत क्या है?
  • अधिदैव क्या है?
  • अधियज्ञ कौन है?
  • मृत्यु के समय भगवान को कैसे याद किया जाए?

2. श्रीकृष्ण के उत्तर

  • ब्रह्म – अविनाशी परम तत्व।
  • अध्यात्म – जीवात्मा।
  • कर्म – सृष्टि का निर्माण और पालन-पोषण।
  • अधिभूत – नश्वर शरीर और पदार्थ।
  • अधिदैव – देवता।
  • अधियज्ञ – स्वयं भगवान, जो सभी यज्ञों में स्थित हैं।

3. मृत्यु के समय स्मरण का महत्व

  • जो मृत्यु के समय जिस भाव का स्मरण करता है, वह उसी रूप में अगले जन्म को प्राप्त करता है।

“यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः॥”

(अध्याय 8, श्लोक 6)


4. परम लक्ष्य – भगवान का स्मरण

  • यदि मृत्यु के समय मनुष्य भगवान का स्मरण करता है तो उसे मोक्ष प्राप्त होता है और वह भगवान के धाम को जाता है।
  • वहाँ से लौटकर पुनः जन्म-मरण के चक्र में नहीं पड़ता।

5. योगाभ्यास और मृत्यु का क्षण

  • योगी को सदैव भगवान का स्मरण करना चाहिए।
  • मृत्यु के समय प्राण को भौंहों के बीच (आज्ञाचक्र) में स्थिर करके “ॐ” का उच्चारण करता हुआ जो साधक भगवान को स्मरण करता है, वह परम धाम को प्राप्त करता है।

6. ब्रह्मलोक और परमधाम का अंतर

  • सभी लोक (ब्रह्मलोक सहित) पुनर्जन्म और मृत्यु से बंधे हैं।
  • केवल भगवान का धाम (परमधाम) ऐसा स्थान है जहाँ पहुँचकर साधक फिर जन्म-मरण में नहीं आता।

सरल सार (आसान भाषा में)

  • मृत्यु के समय जैसा स्मरण होगा, अगला जन्म वैसा ही होगा।
  • भगवान का स्मरण करने वाला मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
  • योगाभ्यास और “ॐ” का जप मृत्यु के समय अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • सभी लोक नश्वर हैं, केवल भगवान का धाम शाश्वत है।